देवराज सेव्यमान पावनां घ्र पङ्कजं
व्याल यज्ञ सूत्र मिन्दु शेखरं कृपाकरम्।
नारदादि योगि वृन्द वन्दितं दिगम्बरं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
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भानु कोटि भास्वरं भवाब् धितारकं परं
नील कण्ठ मीप्सि तार्थ दायकं त्रिलोचनम्।
काल कालम म्बुजाक्ष मक्ष शूल मक्षरं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
शूल टङ्कः पाश दण्ड पाणि मादिका रणं
श्याम काय मादि देव मक्षरं निरामयम्।
भीम विक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
भुक्ति मुक्ति दायकं पशस्त चारु विग्रहं
भक्त वत्यलं स्थितं समस्तलोक विग्रहम।
विनिक् वणन् मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत्कटिं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
धर्म सेतु पालकं त्व धर्म मार्ग नाशकं
कर्म पाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम्।
स्वर्ण वर्ण शेष पाश शोभि ताङ्ग मण्डलं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
रत्न पादुका प्रभाभि राम पाद युग्मकं
नित्यम द्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम्।
मृत्यु दर्प नाशनं कराल दंष्ट्र मोक्षणं
काशि का पुराधि नाथ काल भैरवं भजे॥
