कुलदेवी एवं कुलदेवता का महत्व

हिन्दू पारिवारिकता में आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता एवं कुलदेवी का स्थान सदैव उच्च रहा है, घर घर मे कुलदेवी या देवता की पूजा होता है, प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं, जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार उनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाती कहा जाने लगा, पूर्व के हमारे ऋषी कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने अराध्य देवी देवता को कुल देवता अथवा कुलदेवी का कह कर उन्हें पूजना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे, जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियाँ, ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होता रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे, समय क्रम चलता गया, परिवार बढता रहा और जीवन उपार्जन के लिये परिवार के सदस्य दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने लगे।

कोई धर्म परिवर्तन करके, कोई आक्रान्ताओ के भय से विस्थापित होने लगे, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने लगा, परिवार मे अन्तर जातिय विवाह से संस्कार भूल जाने से, परिवार को पीछे के कारण को न समझ पाने आदि इत्यादि कारण से बहुत से परिवार अपने कुल देवता एवं कुलदेवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा, बहुत से परिवार अपने जीविका उपार्जन के लिये गांव छोड़कर शहर मै जा बसें या देश छोड़कर विदेश में, फीर वो धिरे धिरे परिवार से दूर होते गये और अपने परिवारीक सदस्य भूलते गये अपने अपने काम-काज मै लग गये, यैं से परिवार को पता ही नही की उनके कुल देवता एवं कुलदेवी कौन हैं? किस प्रकार उनकी पूजा की जाती हैं? इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयं-भू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।

कुलदेवी एवं कुलदेवता ज्ञान होना चाहिये कि कुल या वंश का रक्षक देवी देवता होते है, ये घर परिवार एवं वंश परम्परा का प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है।

सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो का स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होता है, अत: इनकी उपासना का महत्त्व दिये बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ठ हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव हानि कम नही कर सकते एवं रोक नही लगा सकते।

इसे यूं समझें यदि घर का मुखिया पिताजी माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोइ भी आपके भले के लिया आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्यो कि वे "बाहरी " होते है।

कुलदेवी का कृपा से पुरे परिवार में शान्ती एवं सम्पन्नता आता है, कुलदेवी एवं कुलदेवता पुरे परिवार की रक्षा करते है, आने वाले संकटों को हटा देते है, इसीलिए पूजाओं में, यज्ञ में कुलदेवी एवं कुलदेवता की पूजा का विधान है, कुलदेवी एवं कुलदेवता के साधना करने से पितृ दोष दूर हो जाते है।

जीस प्रकार माँ-बाप स्वत: अपने पुत्र पुत्रियों के कल्याण के प्रति चिंतित रहते है। ठीक उसी प्रकार कुलदेवी एवं कुलदेवता अपने कुल के प्रति कृपा करने को तत्पर रहते हैं, ठीक माँ बाप, एक कुल के अविभावक की तरह अपने कुल की उन्नतीकरण, समृद्धि और साधन युक्त बनाने की हर तरह से सहायता करते है, वे अपने कुल को सहायता करने से अपने आप मै अपूर्व अनन्दित होते है,परिवार के सुख, उन्नति, समृद्धि मै कुलदेवी-कुलदेवता की हाथ अधिक बड़ा होता है।

मूल रूपसे कुलदेवी एवं कुलदेवता अपनी कृपा कुल पर वरसाने को हमेशा तत्पर रहते है, पर देव योनी में होने के कारण विना मांगे स्वयं देना उनके लिये उचित नही होता, इस लिये हवन, यज्ञ, पूजा, आरती में कुलदेवी एवं कुलदेवता का पूजा का विधान है।

कुलदेवी एवं कुलदेवता प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कूल की सहायता हमेशा करते है, व्यक्ति की पहचान सर्वप्रथम कुल से होती है, प्रत्येक व्यक्ती का जीस प्रकार नाम होता है, गौत्र होता है,उसी प्रकार कुल भी होता है, कुल अर्थात खानदान या वंश परम्परा, इसी लिये मनुष्यको सदैव अपना गौत्र ध्यान मै रखना चाहिये। क्योंकि प्रत्येक कुल परम्परा में उसे कुल के पूजित देव देवता अवश्य होते है, इसीलिए व्रत, त्यौहार, पूजा, जन्म आदि में कुलदेवी एवं देवता को भोग अर्पणा अवश्य दिया जाता है, जो की उन के द्वारा क्या गया काम सुख शान्ति से हो जाये तथा घर में उन्नति, समृद्धि फैलता जाये।

कुल देवता एवं कुलदेवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो उनको जीवन में कोई ज्यादा अंतर नहीं समझ में आया, फिर धिरे धिरे समय चलते गया और कालचक्र बढता गया, सुरक्षा चक्र हटता गया, तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का विना रोक-टोक प्रवेश शुरू हो गया, उन्नति रुकने लगी, पीढ़ियाँ अपेक्षित उन्नति नहीं कर पायी, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांतिपूर्ण शुरू हो गयी तब ये समाधान करने की और भाग्ने लगेते हैं।

पंडित, तान्त्रिक, ज्योतिषी आदि इत्यादी को दिखाने से इनको पता चला की कुलदेवता एवं कुलदेवी की महिमा क्या होती है, हर व्यक्ति अपने दूःखों का कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्यो कि व्यक्ति को ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अंतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।

हर हिन्दु घर में कुल देवता एवं कुलदेवी वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उन्हें संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यहीं किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रहा होता है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं, ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता।

क्यो कि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाएं, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुंचने लगता है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा ईष्ट तक नहीं जाता है नहीं उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्त ता अथवा उनके कम शक्ति होने से होता है।

कुलदेवता एवं कुलदेवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, विधर्मी क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर करना बहुत जरूरी है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ठ पद्धति होता है, शादी विवाह संतान उत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएं भी दी जाती हैं, यदि यह सब बन्द हो जाए तो यह नाराज होते हैं एवं कोई मतलब न रख मूक दर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं।

अपने परिवार एवं गोत्र के बुजुर्गों से कुलदेवता एवं कुलदेवी के बारे में जानकारी लेवें, यदि मालूम न हो तो यह जानने की कोशिश करे, मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परा अनुसार होता है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां) कहा होता है, हर गोत्र धर्म के अनुसार भिन्नता होती है। सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी, कुलदेवता के सामने होते है, और यही इनकी पहचान है, कुलदेव परम्परा भी लुप्त प्राय हो गयी है, जिन घरों में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है (निरवंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौतें हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए, कभी कभी इस तरह के उत्पात पितृ देव (पितर)के कारण भी होते है। प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार को अपने कुल देवता एवं देवी को जानना जरूरी है तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए,जिससे परिवार की सुरक्षा उन्नति होती रहे।

यदि घर में खुशहाली, शुखशान्ती, समृद्धि, उन्नति बनानी है,रूके काम, अड़चन, रोग दोष, व्याधि हटानी है तो सब से पहले आप अपने कुलदेवी एवं कुलदेवता को मनाने की जरूरत है, उनको प्रसन्न करने के लिये उचित पूजा, हवन यज्ञ करने की जरूरत है, ये सब काम उनके बिना प्रसन्न की ये संभव नही है।

यदि ध्यान दिया जाये तो विशेष पूजा या साधना करके कुलदेवी एवं कुलदेवता को प्रसन्न किया जा सकता है,उनको प्रसन्न करने के लिये एक विशेष साधना या पूजा का विधान है।

उनकी विशेष साधना से पहले गणपति पूजन, गुरू पुजन, भैरव स्मरण आदि आवश्यक रूप से सम्पन्न किया जाता है, इन के पूजा के वाद कुलदेवता के मन्त्र कुलदेवता, कुलदेवीभ्यो नमः का उच्चारण करके दैनिक 01 माला करनी चाहिये।

ये साधना मुख्यतया दो सप्ताहों की है। इस साधना हेतु कुलदेवता यंत्र, कुलदेवी भैषज एवं प्रत्यक्ष सिद्धि माला की आवश्यकता पड़ती है, यह विशेष कुलदेवी एवं कुलदेवता मंत्र है। वस्तुत कुलदेवी एवं कुलदेवता ही साधक को समस्त प्रकार की वैभव, उन्नति, शक्ती, प्रतिष्ठा, सुख,शान्ती प्रदान करने मैं सक्षम हैं,और कोई भी देव देवता नही दे सकते हैं।

इसलिये आप की उन्नति, सुख, शान्ती, वैभव, समृद्धि, प्रतिष्ठा, मान सम्मान बढाने एवं रोग दोष, संकट एवं रूके काम सब दूर करने का अचूक उपाय आप के हाथ में ही है, मै हमेशा आप को यही कहता हूं की आप अपने कुलदेवी एवं कुलदेवता को हमेशा-हमेशा खुश रखो, हर पल उनका ध्यान धरो, शुभ काम करने से पहले ऊनका आर्शीवाद ले, आप के कुलदेवी एवं कुलदेवता खुश है तो हर खुशी आप के कदमों में है।