॥ दोहा॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरी,
नमो नमो जगदम्ब।
सन्तजनों के काज में,
माँ करती नहीं विलम्ब॥
॥ चौपाई ॥
जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदि शक्ति जग विदित भवानी॥
सिंह वाहिनी जय जग माता।
जय जय जय त्रिभुवन सुख दाता॥
कष्ट निवारिणी जय जग देवी।
जय जय जय असुरासुर सेवी॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी ।
शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥
दीनन के दुःख हरत भवानी।
नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥
सब कर मनसा पुरवत माता।
महिमा अमित जगत विख्याता॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे।
सो तुरतहि वांछित फल पावे॥
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी।
तू ही शारदा अरू ब्रह्माणी॥
रमा राधिका श्याम काली।
तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला।
बेगि मोहि पर होहु दयाला॥
तू ही हिंगलाज महारानी।
तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता।
तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता॥
तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी।
हेमावती अम्बे निरवाणी॥
अष्टभुजी वाराहिनी देवी।
करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥
चौसट्ठी देवी कल्यानी।
गौरी मंगला सब गुणखानी॥
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी।
भद्रकाली सुन विनय हमारी॥
वज्रधारिणी शोक विनाशिनी।
आयु रक्षिणी विन्ध्यावासिनी॥
जया और विजया बैताली।
मातु सुगन्धा अरु विकराली॥
नाम अनन्त तुम्हार भवानी।
बरनै किमि मानुष अज्ञानी॥
जा पर कृपा मात तव होई।
तो वह करै चहै मन जोई॥
कृपा करहु मो पर महारानी।
सिद्धि करिए अम्बे मम बानी॥
जो नर धरै मात कर ध्याना।
ताकर सदा होय कल्याना॥
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवैं।
जो देवी का जाप करावै॥
जो नर कहं ऋण होय अपारा।
सो नर पाठ करै शतबारा॥
निश्चय ऋण मोचन होई जाई।
जो नर पाठ करै मन लाई॥
अस्तुति जो नर पढ पढ़ावै।
या जग में सो अति सुख पावै॥
जा को व्याधि सतावे भाई।
जाप करत सब दूरि पराई॥
जो नर अति बन्दी महं होई।
बार हजार पाठ कर सोई॥
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई।
सत्य वचन मम मानहु भाई॥
जा पर जो कुछ संकट होई।
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥
जो नर पुत्र होय नहिं भाई।
सो नर या विधि करे उपाई॥
पाँच वर्ष सो पाठ करावै।
नौरातर में विप्र जिमावै॥
निश्चय होहिं प्रसन्ना भवानी।
पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी॥
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै।
विधि समेत पूजन करवावै॥
नित्य प्रति पाठ करै मन लाई।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा।
रंक पढ़त होवे अवनीसा॥
यह जनि अचरज मानहुँ भाई।
कृपा दृष्टि ता पर होई जाई॥
जय जय जय जगमातु भवानी।
कृपा करहु मोहिं पर जन जानी॥